भारत एक धर्म निरपेक्ष और सांस्कृतिक विविधता का देश है जहां प्रत्येक राज्य की अपनी अलग पहचान है। सभी राज्यों में रहन सहन और संस्कृति बहुत ही भिन्न है। प्रत्येक माह में कहीं ना कहीं संस्कृति से जुडे़ विभिन्न कार्यक्रम होते रहते है। इसी क्रम में एक कार्यक्रम ऐसा भी है जहां भूत की पूजा की जाती है सुख समृद्धि के लिए भूतों के नारे लगाए जाते है। उत्तराखण्ड में पिथौरागढ़ जिले के कुमौड गांव में जो प्रथा आज भी विश्व प्रसिद्ध है वो है “लखिया भूत” जो मुख्य रूप से किसानों का मित्र माना जाता है। किसान लोग अपनी फसल की समृद्धि के लिए इसकी पूजा करते है।
अतीत के पन्नो से
लखिया भूत की पूजा करने के पीछे का कारण जानने के लिए इस कहानी से स्पष्ट करना होगा। (इंद्रजात्रा नेपाल में मनाए जाने वाला एक ऐसा आयोजन जिसमे नेपाल के लोग अपनी उन्नत फसल के लिए इंद्रदेव का आह्वान कर बलि चढ़ाते है।)
माना जाता है कि प्राचीन में कुमोड़ क्षेत्र से चार महर भाई नेपाल के राजा द्वारा आयोजित इंद्रजात्रा को देखने पहुंचे जिसमे बलि प्रथा के तौर पर एक भैंसे की बलि देना तय हुआ लेकिन भैंसा काफी खुखार और लंबे घूमे हुए सिंघ का था जिसके सामने जाने में हर कोई घबरा रहा था। तभी महर भाइयों ने राजा से आज्ञा मांगी और ये काम उन्होंने बखूबी निभाया राजा ने इनकी बहादुरी से खुश होकर राजा ने उन सबको जातर, हल तथा कृषि के अन्य उपकरण दिए और साथ ही एक मुखौटा भी दिया जिसे लेकर महर बन्धु पिथौरागढ़ लौट गए। तब से लेकर उन्होंने कुमौड़ में हलजात्रा का आयोजन सुरु किया जैसा कि नाम से ही सपष्ट है कि “हल तथा जातर” फिर बाद में इसको हिलजात्रा के नाम से जाना जाने लगा।
हिलजात्रा का आयोजन
हिलजात्रा का आयोजन पिथौरागढ़ जिले के अनेक जगहों में आयोजन होता है लेकिन कुमोड की हिलजात्रा का विशेष महत्व है। जिसको कृषि उत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसमें लोककलाकार हिस्सा लेते है जो विभिन्न प्रकार के रूप धारण करते है तथा नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन करते है जिसमे दिखाया जाता है कि किसान कितनी मुश्किलों से खेती करता है। और पहाड़ों में खेती करने में किन किन कठनियों का सामना करना पड़ता है।
फिर क्रमवार से कलाकार कुमोड़ के मैदान में प्रवेश लेते है, हाथ में हुक्का चिलम पकड़कर मुखौटा लगाए कलाबाज़ी दिखाते हैं महिलाएं पारंपरिक परिधानों में खेतों में काम करने का स्वांग यानि कि नाटक करते है। फिर अन्त में आता है लखिया भूत जिसके आने की आहट दूर से ही पता चलता है जिसमें ढोल नगाड़ों से जोरदार स्वागत होता है जिसके आने से सारा माहौल ही बदल जाता है लखिया भूत का स्वागत फूल तथा अक्ष्यत से किया जाता है | लखिया भूत जो कि मुखौटा पहने तथा दोनो हाथों में काली चॉवर तथा गले में रुद्राक्ष की माला पहने होता है। कमर में मोटी लोहे की जंजीर बधी होती है। साथ ही ढोल दमोऊ की धुन में छलिया नृत्य का आयोजन होता है साथ ही लखिया भूत के लौटने पर कार्यकर्म का समापन होता है।
हिलजात्रा का महत्व
मुख्य रूप से हिलजात्रा कृषि से संबधित कार्यकर्म है जिसमे किसान लखिया भूत की पूजा कर उससे उन्नत फसल की कामना करते है और इंद्रदेव की भी पूजा की जाती है। अन्य महत्व यह भी है कि इस कार्यकर्म के नुक्कड़ नाटकों से कृषि के कार्यों को करने की तथा उसमें आने वाली कठिनाइयों को भी दिखाया जाता है साथ ही किसान लोग आषाढ में लगातार कार्य करते हुए थक जाते है जिस से उनके मनोरंजन तथा कृषि कार्यों के लिए प्रेरित करना भी है।
सभी चित्र पिथौरागढ के उत्तराखंडी संस्कृतिक राष्ट्रीय स्तर के चित्रकार शमशाद अहमद के हाथ के बने है, जिन्होंने अपनी कलाकारी से उत्तराखण्ड की संस्कृति और सभ्यता को बखूबी बढ़ावा दिया है।