वैसे तो अमूमन यह शब्द हर सास के मुंह से निकल ही जाता है अपने बेटे के लिए लेकिन क्या सच में ऐसा है? अगर बहू ने सिखाया भी है तो ऐसा क्या सिखाया जो सास के गले ना उतर रहा है। सास बहू की नोक झोंक में यह शब्द बहुत की उपयोग होता है। तो क्यों न आज शिक्षक दिवस के रूप में उन बहुओं को भी बधाई दे जिन्होंने अपने पति को शिक्षा दी है। सास की नजर में जो एक बहुत ही उच्च कोटि की शिक्षिका साबित हो रही है। यही बात अगर अपनी बेटी पर लागू करे तो मायने बदल जाते है।
बात करे शिक्षक दिवस की तो इसको मनाए जाने के पीछे का कारण है हमारे देश के पूर्व राषट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिनका अध्यापन के प्रति काफी लगाव था। इनके अध्यापन के प्रति लगाव देखकर इनके जन्मदिन 5 सितम्बर को पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
“बहुत से लोग मानते है कि उनके पहले गुरु मां बाप है तथा कुछ लोग उनको गुरु मानते है जिन्होंने उनको जिंदगी में सही राह दिखाई है।”
मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक हमेशा ही सीखता रहता है। जरूरी नहीं कि वह किताबी ज्ञान ही हो सीखने के लिए कुछ भी सीखो फिर भी कम है। लोग गुरुओं का हृदय से सम्मान करते है, चाहे वो कहीं भी पहुंच जाए हमेशा गुरु की दी हुई शिक्षा पर अमल करते है शिष्टाचार जो भी गुरु से मिला हो उसको खुद में ओढ़ लेते है। वाकई में गुरु का स्थान सबसे उपर है।
“माता पिता गुरु देवता”
शास्त्रों में भी गुरु का स्थान देवता से भी ऊपर दिया गया है जिसमें माता का स्थान सबसे उपर है जो कि हर किसी के लिए पहले गुरु का दर्जा है। वास्तव में माता ही वो गुरु है जिसने हमको इस धरती पर बोलना सिखाया शिष्टाचार सिखाए।