राष्ट्र भाषा हिन्दी को अब हिंदी दिवस के रूप में मनाने की नौबत आ चुकी है, अर्थात कहीं न कहीं इसके लुप्त होने का डर हमारे नीति नियंताओं को रहा होगा । नहीं तो हिंदी हमारे भारतवर्ष का एक अभिन्न अंग है और हम इसे माँ के समकक्ष दर्जा देते हैं । इसे देववाणी संस्कृत की “तनया” कहा जाता है । जब हिंदी भारतवर्ष के कण – कण में विद्यमान है, तो हिंदी दिवस के क्या मायने ?
कुछ कारण तो “Happy Hindi Day” जैसे वाक्यों से ही स्पष्ट हो रहे हैं । हिन्दी दिवस हम सभी की उदासीनता का ही उदाहरण है । फिर भी हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ ।
बृज कवि श्री सोम ठाकुर जी ने ठीक ही कहा है
“अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें,
हम इतने निर्धन नहीं कि भाषा से औरों के ऋणी रहें । “