उस एक पल
दहक सी गयी
जब कुंडी ने
अपना ही
काम किया |
कितना भयावह है
कुछ घंटों के लिए
अनचाहे
बंदी बन जाना |
बंद गुसलखाना में
बंदी
कोई और भी है
जिन्हें अनचाहे
थोपी गयी है टायल |
दीवारें भी अपनी
सारी वेदनाएं
भींच लेती है अपने
भीतर |
क्योंकि
बाहर से बंद हुई कुंडी
अनचाहे
सांकल लगा देती है
भीतर |