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उस एक पल दहक सी गयी जब कुंडी ने अपना ही काम किया… a Poem by Swati Yarso

Kundi, Pahadi Log a Poem by Swati Yarso

उस एक पल
दहक सी गयी
जब कुंडी ने
अपना ही
काम किया |

कितना भयावह है
कुछ घंटों के लिए
अनचाहे
बंदी बन जाना |

बंद गुसलखाना में
बंदी
कोई और भी है
जिन्हें अनचाहे
थोपी गयी है टायल |

दीवारें भी अपनी
सारी वेदनाएं
भींच लेती है अपने
भीतर |

क्योंकि
बाहर से बंद हुई कुंडी
अनचाहे
सांकल लगा देती है
भीतर |

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