“फ्वा बाघा रे”,”चैत की चैत्वाल” इन दोनो लोकगीत की धुन उत्तराखंड के हर घर मैं गूंजती है।
पर इनकी पहचान इनके रीमेक से ज्यादा मिली पर इन गीतों का श्रेय जाता है उतराखंडी संगीत के भीष्म पितामह। जिनकी हम बात कर रहे हैं उनका नाम ही काफी है उतराखंडी लोक गायन मै। उत्तराखंड के संगीत के प्रति गहरी श्रद्धा के लिए “उत्तराखंड लोक संगीत का भीष्म पितामह” कहा जाता है। उत्तराखंड के 2500 से अधिक लोकगीतों को संगीतबद्ध किया जाना और गढ़वाली और कुमाउनी भाषा के 500 से अधिक गीतों को अपनी आवाज दी।
जानते है चंद्र सिंह जी (Chandra Singh Raahi) के बारे मै
चंद्र सिंह राही जी (Chandra Singh Raahi) एक प्रतिभाशाली संगीतकार, कवि और गीतकार भी थे। वह अपने उत्तराखंडी गीतों के लिए जाने जाते हैं, जिनमें ‘स्वर्ग तारा’, ‘भाना है रंगीली भाणा’, ‘सूली घुरा घुर’, ‘सात समुंदर पार’, ‘हिल्मा चांडी चू’, और ‘जरा थंडू चला दी’ शामिल हैं। राही कई गढ़वाली गायकों के लिए प्रेरणा थे।
गढ़वाली गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने चंद्र सिंह राही को अपनी प्रेरणा श्रोत मानते है। राही के लोकप्रिय गीत फ्योंलारिया और पारंपरिक आँचल जागर – चैता की चैतवाली को क्रमशः 2016 और 2018 में लोकप्रिय गढ़वाली गायकों द्वारा रीमेक किया गया था। जिनको काफी प्रसिधि हासिल हुई।
प्रसिद्ध लोकगायक पप्पू कार्की ने भी इनके गीत फ्वा बाग़ा रे को अपनी आवाज़ देकर अमर किया था। 1942 से 2016 राही जी अपने जीवनकाल मैं अनेक सम्मानों से नवाजे गए थे जिनमे से कुछ निम्न है |
- मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान
- डॉ शिवानंद नौटियाल स्मृति पुरस्कार
- गढ़ भारती , गढ़वाल सभा सम्मान पत्र
- मोनाल संस्था, लखनऊ सम्मान पत्र