दुश्मन की एक गोली,
जब सैनिक के सीने,
में, थी लगी।
लहू के फव्वारे के संग,
उसके जज्बातों की भी,
थी, झड़ी लगी।
माँ का चेहरा, आँखों के,
के सामने था आया,
एक पल को उसका मन,
भर आया।
जज्बातों को कंट्रोल किया,
एक दुश्मन को था ढेर किया,
अगले ही पल बहना का,
चेहरा आँखों में उभर आया,
हाथों में राखी की थाली,
लेकर पास वो, थी आ रही।
अकस्मात उसकी पीड़ा,
ने ध्यान था उसका भटकाया।
पीड़ा को भूलना को,
बंदूक को उठाया, और दुश्मन,
को उसने निशाना बनाया,
करारा सा वार दुश्मन पर था उसने किया,
एक और दुश्मन को वीर ने था, ढेर किया।
तभी सनसनाती गोली,
उसके माथे पर लगी,
अंधेरा सा उसके सामने,
था छा गया।
अचानक बाबुजी का,
मुरझाया,वृद्ध चेहरा,
उसके अंधेरे मन में था, आ गया।
मानों बाबुजी ये कहते,
जाना था मुझे तेरे कंधे पर,
मुझसे ही पहले तू, मेरे कंधे पर जा रहा।
आँसू, आँखों पर थें उसके,
भाव वो बिभोर हो के,
धीरे-धीरे मृत्यु के निकट, था जा रहा।
जज्बात क॔ट्रोल किया,
और एक घात किया,
तीन दुश्मनों को,
एक साथ ढेर किया।
पंगडंडी गाँवों की,
याद,उसे आने लगी,
प्रेमिका का चेहरा,
आँखो में था घुम गया,
खेत-खलिहान,
और पनघट गाँव का,
रह-रहकर अब,
याद उसे आने लगा,
तभी सनसनाती,
हुई एक गोली उसके,
बदन के आरपार हुई।
कराह निकली मुँह से,
दर्द से वह तड़प उठा,
मृत्यु महबूबा बन,
पास उसके आने लगी
धीरे-धीरे धरणी पर,
वो था गिरने लगा।
उसकी वीरता के गीत,
प्रकृति भी गाने लगी,
तभी ही उसके और,
साथी पहुँच गयें, अकेले ही अब तक,
दुश्मन से टक्कर लिया,
पाँच दुश्मनों को था,
अब तक ढेर किया,
मातृ-भूमि को नापाक,
नही उसने होने दिया,
साथी वीर आ गये थें,
अब वो निश्चिंत हुआ,
धीरे-धीरे उसने था,
मृत्यु का वरण किया।
बंदूक के संगीनों में,
सर अपना रखकर,
अग्निवीर हमेशा के,
लिए दुनियाँ को छोड़ गया। रो रही थी मातृभूमि,
आज फुट-फुटकर , प्रकृति ने था आज,