घुघुति एक साधारण सा, सज्जन सा शांत स्वभाव का पक्षी है जो अक्सर पहाड़ों में बहुतायत देखने को मिलता है यह पक्षी हमेशा जोड़े में नजर आता है जो पहाड़ की संस्कृति से जुड़ा हुआ है पहाड़ से जुड़े लोग बिना इसके पहाड़ों की कल्पना भी नहीं कर सकते है।
उदासीन पक्षी घुघुति
घुघुति को अगर हम एक उदासीन पक्षी कहे तो भी गलत नहीं होगा। इस पक्षी से जुड़ी पौराणिक कथाओं में जहा भी उल्लेख है इसको एक उदासीन पक्षी की संज्ञा मिली है| पहाड़ों मै चैत्र – वैशाख में जब खेतों में महिलाएं काम करती है तो यह पक्षी भी अपना चारा लेने आता है और एक उदासीन सी आवाज़ निकाल कर लोगो को भी उदास होने पे मजबूत कर देता है मुख्य रूप से खेतों में काम करने वाली महिलाओं को उनकी मायके की याद दिलाता है। साथ ही घुघुति शब्द का प्रयोग कुमाऊं गढ़वाल में विरह गीतों में बखूबी होता आया है। जैसे ” घुघुति घुरण लगी मेरे मैत की” इस लोकगीत ने काफी लोगों को पहाड़ की याद को घुघुति से जोड़ा है| अक्सर जहाँ पहाड़ की याद आती है तो घुघुति की और जहाँ घुघुति दिखे तब पहाड़ की याद आना लाजमी है।
घुघुति एक संदेश वाहक
जिस तरह अधिकतर लोग कबूतर को संदेश वाहक मानते है उसी तरह पहाड़ों में घुघुति को माना गया है| लेकिन यह संदेश खुद से ही अपनी मधुर सी आवाज़ में देता है इसको ध्यान से सुनने पर आपको महसूस होने लगेगा की यह आपको क्या संदेश देना चाहता है। अक्सर यह जब यह उदासीन सी आवाज निकालता है कहीं बिजली की तार पर बैठ कर| खेतों में बैठकर तब यह शायद अकेला सा महसूस करता है और जोड़े से बिछड़ जाने की विरह में उदासीन आवाज़ निकलता है।
प्रचलित लोककथा
मुझे आज भी याद है जब घुघुति बाड़े में चूगने आया करती थी तो उसके चुगने को ध्यान से देखता था और उसकी गर्दन में एक तरह का डिजाइन बना होता था जो बहुत ही सुन्दर लगता था। इसी के कथन में बुजुर्गों से एक कहानी सुनी जो इस प्रकार है| कहते है कि प्राचीन काल में उत्तराखंड के किसी गांव में चैत के महीने में भाई अपनी बहिन को भिटोला देने उसके ससुराल गया, जहाँ उसने देखा कि उसकी बहिन सोई हुई है| उसको उसे उठाना उचित नहीं समझा तथा वह उसका मंगल सूत्र पीठ की तरफ घुमाकर तथा भिटोले की सामग्री पड़ोसियों को दे गया जैसे ही उसकी नीद खुली उसने अपना मंगलसूत्र उल्टा देख कर जानना चाहा कि हुआ क्या था तभी पड़ोसियों ने बताया कि तुम्हारा भाई आया था और तुम्हे सोया देखकर लौट गया और भिटोला हमको देकर चला गया। इस से आहत होकर वो बहन बहुत रोई और रोते रोते जान दे दी फिर कहावतों में है कि अगले जनम में वह औरत घुघुति की जाती को प्राप्त हुई और यह बोलती कि “घुघुति बासूती भै आई मै सूती” अर्थात घुघुति बासूती भाई आया और मै सोई रह गई। और जो घुघुति के गर्दन में चमकीला सा निशान है उसको मंगल सूत्र बताते है। आगे चलकर यह उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोरी बन गई। आज भी गाओं में हर घर में बच्चों को सुलाने के लिए यह लोरी गाई जाती है।