हिसालू (Hisaalu) की झाड़ी एक मध्य हिमालयन जंगली झाड़ी (Himalayan Bush) है जो मुख्य रूप से उत्तराखंड में पाया जाता है यह फल जितना दिखने में सुंदर है उस से भी ज्यादा खाने में जायकेदार है। इसका स्वाद खट्टा मीठा तथा पूर्ण रूप से पक जाने पर मीठा होता है। हिसालू की झाड़ी एक कांटेदार झाड़ी है जिसकी पत्तियों में भी काफी मात्रा में कांटे पाए जाते है।
पकने का समय
यह फल पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मी के मौसम में लगभग जून के महीने तक पकने लगता है। पकड़ने बहुत ही नाजुक होता है पकड़ते ही बिखरने लगता है। और मुंह में आते ही गलने लगता है। इसका स्वाद पूरे मुंह में शहद की तरह घुलता है। पहाड़ों में बच्चे इसको खाने के लिए जान को जोखिम में डालकर भी खाते है एक ही डाली में लगे हीसालू के झुंड एक ना एक बार आपके मन को भी लालायित जरूर कर देंगे और आप भी कांटों की परवाह ना करते हुए इसकी ओर झपट लेंगे।
हिसालू के लाभ
प्राचीन काल से ही पहाड़ों में जड़ी बूटी के रूप में हिसालू का बखूबी प्रयोग हुआ है हिसालू की झाड़ी बहुत ही उपयोगी साबित हुई है फल,तना, पत्ती तथा जड़ सभी चीजे आयुर्वेदिक औसधी साबित हुई है।
- हिसालू के सेवन से अनिद्रा की समस्या ख़तम होती है लेकिन ज्यादा मात्रा में लेने पर अधिक नीद भी आने लगती है।
- हिसालू के जड़ों से निकलने वाले रस का सेवन करने से पेट से सम्बन्धित रोगों को दूर किया जाता है।
- हिसालू के पत्तों को कूटकर इस से निकलने वाला रस भी खांसी बुखार में कारगर है।
- हिसालू के तने की छाल को पानी में उबालकर काढ़ा भी तैयार होता है जो जुखाम बुखार का रामबाण इलाज है।