वैसे तो नंदा देवी महोत्सव उत्तराखंड के अनेक शहरों और हिल स्टेशनों मै धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन नैनीताल का नंदा देवी महोत्सव कुछ खास है जिसको देखने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी आते है। हर साल धूम धाम से मनाया जाने वाला यह पर्व सैलानियों के लिए भी खास बन जाता है |
लगभग एक सदी से लगातार मनाए जाने वाला यह पर्व मां नंदा देवी को समर्पित है। कुमाऊं में चंद शासक और कत्यूरी शासक नंदा देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते थे और आज भी उनकी पीढ़ियां पूजती है। सर्व प्रथम नंदा देवी महोत्सव का आयोजन अल्मोड़ा जिले में सत्रवी सताब्दी में हुआ था तब से लेकर अब तक इस महोत्सव को कुमाऊं के अनेक जिलों में मनाया जाता है।
हिमालई श्रृंखलाओं में स्तिथ नंदा देवी पर्वत में मां नंदा का निवास बताया गया है। कथाओं में नंदा देवी को मां पार्वती की बहिन बताया गया है तथा कुछ लोग इनको मां पार्वती का ही रूप बताते है। महोत्सव शुरू होने से पहले माता का आह्वान जागर लगा कर किया जाता है और माता की डोली तैयार की जाती है।
मेले का आयोजन
नैनीताल में प्रत्येक वर्ष नंदा देवी का महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें एक भव्य मेले का आयोजन भी होता है जिसको देखने हजारों की मात्रा में भक्त लोग आते है शाम को मंदिर के आश्रम में कीर्तन होते है तथा आरती के साथ माता का जयकारा लगता है। माता का डोला पूरे शहर में घुमाया जाता है जिसमें हजारों लोग हिस्सा लेते है साथ ही छलिया नृत्य का आयोजन भी होता है और विधिवत मूर्ति का विसर्जन होता है। जितनी महत्ता दक्षिण भारत में गणपति विसर्जन को दिया जाता है उतनी ही महत्ता उत्तराखंड में मां नंदा सुनंदा को दिया जाता है।