पहाड़ों में फल फूलों का सीजन चरम पर है बरसात के बाद का जो समय है, वो केवल सुकून ही नहीं बल्कि फल फूलों से भरपूर रहता है, जिसमे अनेक प्रकार के सुन्दर फूलों से सजा अपना पहाड़ बहुत ही शोभनीय दिखाई पड़ता है। फूलों की सुंदरता की कल्पना एक पूर्ण रूप से श्रृंगार की हुए कन्या के समान कर सकते है। जिसमें अनेक प्रकार के भिन्न भिन्न रंगो से सजे पुष्पों की सुंदरता देखने को बनती है।
अश्विन माह के आरंभ समय में पहाड़ों में अनेक प्रकार के फल जैसे अमरूद, सेव, अखरोट, माल्टा, नीबू तथा ककड़ी प्रचुर मात्रा में लगे रहते है। जिन्हे देख कर मन लालायित रहता है। वहीं बात करे तो पहाड़ की ककड़ी की तो इसकी बात ही कुछ और है, धान के खेतों में ककड़ी की बेल में लगी ककड़ियों का स्वाद ही कुछ और है।
बाड़े में लगी ककड़ी की बेल आज भी याद आती है जिसमे बहुत मात्रा में ककड़ी के फलों का लगना साथ में हरी मिर्च का सिल बट्टा में पिसा नमक किसको याद नहीं आता। ककड़ी के लंबे स्लाइस उपर से उसमे लगा नमक देखने से ही मुंह में पानी आना लाजमी सी बात है। पहाड़ी होकर पहाड़ की ककड़ी नहीं खाई तो क्या खाई।
ककड़ी (Pahadi Cucumber) का जीवन में महत्व
जैसा कि पहाड़ की ककड़ी खाने में जितनी स्वाद से भरी है उतना ही स्वाद भरा होता है इस से बने पहाड़ी रैयते में | ककड़ी सुरुवात में हरी तथा जो पूरी तरह पक जाती है वो पीली हो जाती है इस पीली ककड़ी से ही बनता है स्वादिष्ट रायता।
ककड़ी को उत्तराखंड के लोकगीतों में भी काफी पहचान मिली है |
हाय ककड़ी झीलें मा |
लूड पीसो सिले मा |
ककड़ी (Pahadi Cucumber) का रोजगार में महत्व
पहाड़ों में लोग ककड़ी को सीजनल रोजगार के तौर पर भी देख रहे है। जिसमें अच्छी किस्म की ककड़ी की पैदावार कर बाजारों में अच्छा मुनाफा कमा रहे है।