देखो कभी जो गौर से मुझे, मेरा हर दर्द दिखाई देगा,
कुछ न कह कर भी तुम्हे मेरा, हर दर्द सुनाई देगा।
इन बंद दरवाज़ो की ढहती हुई दीवारों से परिश्रम का वह हर एक पत्थर दिखाई देगा,
इन लकड़ीयों के दरवाज़ो पर लगी वो मेरे आंसुओ का दीमक दिखाई देगा।
कभी जिस आँगन को तुम प्यार से मिट्टी अथवा गोबर से लिपा करते थे,
आज उस आँगन मे उगा हुआ हर एक जंगली पौधा दिखाई देगा।
अगर देखो कभी गौर से तो तुम्हे मेरा हर दर्द दिखाई देगा |
जिस घर को तुमने सजाया था, यहां अपनो का स्नेह पाया था,
दो रोटी के लिए छोड़ चले शहर की ओर क्योंकि तुमने अब इस घर को नही, शहरी मकान को गले से लगाया था।
कौन समझे हमे जब तुम ही नही समझ पाए थे,
तुम्हारे जाने के बाद सन्नाटे और विराने ने किस प्रकार यहा डेरा जमाया था।
परंतु मै समझता हुं तुम्हारा दर्द,
क्योंकि इतने साल शहर मे बिताने पर भी शहर ने तुम्हे कभी नही अपनाया था।
आज पैदल ही निकल पड़े हो तुम, आज तुमने हर सुधबुध बिसराई है,
क्योंकि इस महामारी ने तुम्हे मेरी याद दिलाई है।
अब आए तो दोनो अपने अपने दर्द का किस्सा सुनाएंगे,
हम मिल कर इस घर और खेत खलिहान को फिर से स्वर्ग बनाऐंगे।