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इन्सान जो ये भागा है…वो कभी तो लौटकर आयेगा | a Poetry by Kartik Bhatt

Kartik Bhatt Insaan Jo Bhaaga

इन्सान जो ये भागा है
वो देखो कब तक भागेगा |
वो दूर शहर में जो सोया है
वो कभी तो नींद से जागेगा |

कभी तो मुड़कर देखेगा कि दूर कितना निकल आया…
कभी तो खुलकर बोलेगा कि आखिर कहाँ से है वो आया…
वो पेड़ जो इतना ऊंचा है कि अपनी जड़ें ही देख न पाता है…
किस काम का है वो पेड़ भला जो सतह से ही कट जाता है…

वो उजाले ढूंढने जो है निकला कभी तो वापस आयेगा…
जहाँ से शुरूआत करी थी उसने वहाँ कभी तो अंधेरा मिटाएगा…
नाम बनाने गया है जो वो कभी तो पहचान भी ढूंढेगा…
और पहचान गुमनाम जब पायेगा…
तब शायद वापस आयेगा…
इन्सान जो ये भागा है…
वो कभी तो लौटकर आयेगा…
आज जो खंडहर बना हुआ है…
वो कभी तो घर कहलाएगा…