वो कभी घर हुआ करता था हमारा पर आज वो खंडहर है,
वहाँ कभी खेत हुआ करते थे हमारे पर आज वो सब बंजर है|
पलायन की आंधी ऐसी चली कि सबको अपने साथ उड़ा ले गई,
ईजा-बौज्यू ने तो कस के पकड़ा था हाथ बच्चों का पर जरूरतों ने ऐसा खींचा कि वो हाथ छुड़ा गई|
गलती भी किसकी कहें नई पीढ़ी है नई दुनियां से वास्ता तो होना चाहिए,
ज्यादा तो मांग नहीं रहे थे वो पर उनके गाँव तक पक्का रास्ता तो होना चाहिए|
ये हाल देख के मेरा पहाड़ भी रो गया,
पर क्या करें नेता तो हल्द्वानी-देहरादून जाके आराम से सो गया|