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गौत्यार (Cow Festival) अथवा खतड्वा | आओ जाने

Cow Festival

जैसा कि आप जानते है उत्तराखंड राज्य की संस्कृति और सभ्यता पूरे दुनिया में प्रसिद्ध है यहां के समय समय पर होने वाले त्याहोरों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलक आपको हमेशा दिखाई देती है। इसी क्रम में आइए आज जानते है गौत्यार (Cow Festival) अथवा खतड़वा के बारे में |

गउत्यार अथवा खतड्वा का महत्त्व

जैसा कि पहाड़ी लोगो का जीवन खेती बाडी से चलता है और पहाड़ों में सीढ़ीनुमा खेतों में हल लगाने के लिए बैलों की जरूरत होती है। साथ ही दूध दही मक्खन के लिए गाय पर निर्भरता रहती है। गाय को हम माता के समान मानते है तथा इसकी पूजा करते है। जैसा कि इन सारे कामों के लिए हम इनपर निर्भर रहते है तो साथ ही उनका ख्याल रखना भी कर्तव्य बनता है। तो आइए जानते है अतीत के कुछ पहलुओं से एक रोचक जानकारी गउत्यार अथवा खतड्वा के बारे मै।

मान्यताएं और धारणाएं

मान्यताओं के अनुसार आषाढ की फसल बुआई के बाद कुछ बुरी आत्माएं जानवरों के निवास स्थान में आ जाती है तथा उनको परेशान करने लगती है जिसको एक बूढी के रूप में पुकारते है इसी बूढी को भागने तथा जानवरों को इस संकट से बचाने के लिए इस पर्व को मनाया जाता है।

  • गाय गोठ आड़
  • खतड्वा गोठ भाड़

खतड्वा मनाने का तरीका

इस पर्व को मानने का एक विशेष तरीका है जिसमें जानवरों की पूजा की जाती है और जानवरों को सूर्यास्त से पहले गोठ में बांध देते है। जानवरों को अलग अलग प्रकार की खूब सारी हरी घास डाली जाती है। खतड्वा के एक दिन पहले घर के पास गोबर के ढेर को हरी घास तथा कूश की घास से ढककर उसमे हरी घास से बूढी को बनाते है तथा अगले दिन उस बूढ़ी को आग के हवाले करते है।

गावों में लोग घर के पास में एक छोटा सा मंदिर बना कर उसमे जितने भी उनके पास जानवर है उनको पत्थरों से स्थापित करते है तथा एक गवाला भी बनाते है। प्रसाद के तौर पर धान को भूनते है जिसको सिरोला बोलते है जो मंदिर में चढ़ाया जाता है जिस वर्ष फसल देर से पकती है उस वर्ष गेहूं और भट्ट की दाल को मिलाकर भुना जाता है और चढ़ाया जाता है। साथ ही फल के रूप में अखरोट तथा ककड़ी चढ़ाई जाती है। दिया जलाकर उनकी पूजा की जाती है साथ ही ग्वाल देवी का भी आह्वाहन किया जाता है और जानवरों कि रक्षा की प्रार्थना की जाती है पहाड़ों में ग्वाल देवी का भी विशेष महत्व है।

ग्रामीणों का मानना है कि जब जंगल में जानवर चरने जाते है तो ग्वाल देवी उनकी रक्षा करती है। ग्वाल देवी को जंगलों में अलग से भी पूजा जाता है।

खसोर मशोर ताल देश सास माल देश ससुर

कुश की राख को बभूती के तौर पर सबको लगाया जाता है, और खतड्वे की अधजली लकड़ियां चारों ओर बिखेर दी जाती है।

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