देवभूमि उत्तराखंड:
उत्तराखंड को अपने रीति रिवाज, लोक पर्व और संस्कृति के लिए जाना जाता है। अगर देखें तो लगभग साल भर कुछ न कुछ लोकपर्व होते रहते हैं, बहुत से रीति रिवाज ऐसे हैं जिस को मनाने पर हमें गर्व है और ये रिवाज सालों तक मनाये जायँगे।
बात करें आज की (चैत) तो आज के महीने का खास पर्व है भिटोली, रोटी। आप को नाम सुनते ही पता चल गया होगा। उत्तराखंड में भिटोली नाम से जो पर्व मनाया जाता है उस को यह अलग अलग नामों से भी जाना जाता है।
आओ आज हम जाने हैं की “भिटौली” (Bhitauli Festival) ये रिवाज क्यों मनाया जाता है?
भिटोली का शाब्दिक अर्थ (Meaning of Bhitauli):
भिटोली का शाब्दिक अर्थ है – “भेंट” मतलब मुलाकात, मिलना विवाहित लड़की के मायके वाले पापा, भाई, माँ कोई भी परिवार का परिजन चैत के महीने में विवाहित लड़की से मिलने उसके घर जाते हैं और साथ में अपनी लड़की के लिए आटा, चावल, दूध, घी, तेल मिठाई या फल तथा कपड़े जाते हैं वैसे तो पहली भिटोली तो बैशाख के महीने में दी जाती है मगर उसके बाद फिर चैत के महीने में ही दिया जाता है। लड़की चाहे कितने ही सम्पन्न घर में ब्याही गयी हो मगर लड़की को अपने मायके से आने वाली भिटोली का साल भर से इंतजार रहता है। हम लोकल भाषा में भिटोली को रोटी देना भी बोलते हैं।
“पुराणों में लिखा गया है कि जो भी रोटी (भिटोली) भेंट के रूप में देते हैं उस से कई गुना आशीर्वाद मिलता है।”
भिटोली लोक संस्कृति (Bhitauli – Folk Festival):
उत्तराखडं में भिटोली लोक संस्कृति (Bhitauli Festival Uttarakhand) का एक बहुत ही सुन्दर पर्व है आज से लगभग 10-15 साल पहले कोई भी अपनी चेली(बेटी ) के यहां जाता था तो बहुत सा सामान जैसे तेल, आटा, चीनी, मीठाई और कपडे ले जाता था।
मुझे याद है “मैं अपनी मम्मी के साथ मेरी बुआ और पापा की बुआ के यहां जाता था।” आज की तरह नहीं दिन में , हम साम को जाते थे और उस दिन का भोजन भी वहीं करते थे। साम को तेल से बनी चीजें जैसे -पूरी, शेल, साथ में आलू और गोभी की सब्जी बनाते थे।“ आज तो मीठाई और फल ही ले जाते हैं और दिन ही दिन में जाते और वापस आ जाते हैं। यहाँ पश्चिमी सभ्यता के आ जाने के बाद भी भिटोली देने का पर्व चल रहा है ये हमारी संस्कृति के लिए एक अच्छी बात है।
उत्तराखंड के लोग चाहे आज भारत में कहीं भी रह रहे हैं भिटोली का पर्व मनाना नहीं भूलते हैं, चाहे लड़की कितनी ही दूर हो अगर जा नहीं सकते तो उस के लिए रोटी के बदले पैसे भेज देते हैं।
भिटोली क्यों मनाते है:
भिटोली मानाने का खास कारण तो पता नहीं मगर मैंने सुना है कि जब पिता, भाई, या कोई भी घर का सदस्य अपनी लड़की के यहां जाता है। यह मैंने सुना है क्या पता यह एक अफवाह हो अगर दोस्तों आप लोगों को कारण पता हो तो कमेंट कर के जरूर बताये।
अपनी लड़की से मिलने जब कोई जाता था तो वो अपने खाने के लिए साथ में कुछ राशन ले जाता था लड़की से मिलने के बाद अपने लिए खुद अपने आप अपने सामान से ही भोजन बनता था। और एक दो दिन लड़की के यहाँ रह कर वापस आ जाता था। “कहा जाता है कि मायके वाले अपनी लड़की के यहाँ का पानी तक नहीं पीते थे। और अपना भोजन घर से ले कर जाते थे। ” अब ये कहावत कितनी सच है ये तो हमारे बुजुर्ग लोग ही जाने। भिटोली को लोग साधारण भाषा में रोटी भी कहते हैं।
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दोस्तों आज हमने उत्तराखंड के एक लोकपर्व के बारे में जाना जिस को हम आम भाषा में रोटी और भिटोली (Bhitauli Festival) कहते है। अगर आप को इस पर्व के बारे में अगर कोई जानकारी हो तो कृपया हमें कमेंट कर के जरूर बतायें ।
एक छोटा सा गीत जो विवाहित लड़की अपने मायके वालों की याद में गाती है
“न बासा घुघुती चैत की – याद ये जांछी मिकेँ मैत की”