मैं मोहन नेगी आज आप के साथ अपनी कुछ यादों के लम्हों को “पहाडी लोग” ब्लॉग के द्वारा कहने की कोशिश कर रहा हूँ। हम इंसान पता नहीं किस दौड़ में शामिल हो गए हैं ,और लगातार दौड़े जा रहे हैं ,रुकने का नाम ही नहीं है ,चाहे हम कुछ गलत ही क्यों न कर जाएँ बस दौड़ रहें हैं।
मगर इस दौड़ में न हम पहले निकले न अंतिम और न अपने लक्ष्य तक ही पहुंच पाएं हैं।
मैं इस कविता के माध्यम से कहना चाह रहा हूँ कि हम कब लौटेंगे, आखिर कब तक चलेंगे।
कविता अच्छी लगी तो कमेंट जरूर करना।
जीवन यात्रा में अब लौटने की तैयारी शुरू करें,
आदमी को लौटना था पर लौट नहीं पाया,
पहुंच गया वहाँ से कोई लौट नहीं पाया।
हमें अपनी सीमाओं का पता नहीं होता,
हमारी जरूरतें तो सीमित है पार चाहते अनंत।
अपनी चाहतों की मोह में लौटने की तैयारी ही नहीं करते,
जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है,
फिर हमारे पास कुछ नहीं बचता।
फिर इतना आसान नहीं होता, जीवन में लौटना।
आज अपने आप से कुछ प्रश्न अपने आप से पूछें,
“मैं जीवन की दौड़ में सम्मलित हुवा था आज कहाँ पहुंचा?
आखिर मुझे जाना कहाँ है ? और कब तक पहुंच पाउँगा?
सच यही है जो लौटना जानते हैं, वही जीना जानते हैं।
पर इतना आसान नहीं होता, जीवन में लौटना।