आज आश्विन संक्रांति है। आज पूरे कुमाऊं क्षेत्र और मेरे गांव में भी खतड़वा नाम का लोक पर्व धूम धाम से मनाया जायेगा |
जैसा कि हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक पर्व की एक विशेषता एवं वैज्ञानिकता है। उसी प्रकार खतड़वा लोक पर्व भी पशुधन से संबंधित त्योहार है। आज एक जगह पर घास के पुतले बनाये जाएंगे, जिसे फूलों से सजाया जाएगा और उस पुतले को अखरोट, मक्का और ककड़ी अर्पित की जाएगी। उसके बाद आज सभी लोग अपनी गौशालाओं (गोठ) की सफाई करते हैं। उसके बाद सभी जानवरों को नहला धुला कर नई हरी घास खिलाई जायेगी। गोठ में लगे मकड़ी के जाले साफ होंगे, फिर उनके सोने लेटने के लिये नई सूखी घास बिछाई जायेगी। सभी जानवरों का तिलक एवं अभिषेक किया जायेगा। फिर शाम को भांग के डंठल पर एक पुराना कपड़ा बांधकर उसे जलाया जाएगा और पूरे गोठ में घुमाया जाएगा, उसके बाद उस आग को गांव की सीमा पर एकत्र केड के ढेर में भाज खतड़वा भाज कहते हुए फेंक दिया जाएगा। फिर प्रसाद के रूप में सामूहिक ककड़ी भोज होगा। कुछ नवयुवक आग के ऊपर से कूदेंगे। सभी के माथे पर ककड़ी के बीज को लगाया जायेगा।
सभी कृषकों एवं पशुपालकों को उनके लोकपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं