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उत्तराखंड की कुमाऊँ रेजिमेंट (Kumaon Regiment, Uttarakhand) | आओ जाने

Kumaon Regiment

कुमाऊँ रेजिमेंट जो बनी है, कुमाऊँ में रहने वाले लोगो के द्वारा। देश के अलग -अलग जगहों में इस रेजिमेंट का गठन बहुत पहले समय से किआ जा रहा है। कुमाऊँ रेजिमेंट (Kumaon Regiment) को इसका वास्तविक नाम वर्ष 1945 में और वर्ष 1948 इसको अपना मुख्यालय रानीखेत, अल्मोड़ा में मिला। इनका सिद्धान्त है पराकर्मो विजयते और वॉर क्राई कलिका माता की जय है | गंगोलीहाट प्रसिद्ध हॉट कलिका मंदिर में प्रथम मूर्ति की स्थापना कुमाऊँ रेजिमेंट ने ही करी थी ।

अगर हम इसके इतिहास की बात करें तो सर्वप्रथम सन 1788 में दक्षिण भारत के निजाम ने एक ब्रिगेड पलटन बनायी थी जिसे अब 2 कुमाऊँ कहा जाता है। उसी प्रकार 1917 में अंग्रेजो ने प्रथम कुमाऊँ राइफल्स की स्थापना की, जिसे वर्तमान में 3 कुमाऊँ के नाम से जाना जाता है। उसी प्रकार 4 कुमाऊँ तथा 5 कुमाऊँ का भी 1788 मैं दक्षिण भारत के नवाब सलवात खाँ ने एक ब्रिगेड की स्थापना करके की थी। 4 कुमाऊँ बटालियन के मेजर सोमनाथ को जम्मू कश्मीर में भारत विभाजन के दौरान उनके अदभुत पराक्रम के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

“कुमाऊँ रेजिमेंट से सेना को अब तक तीन सेनाधक्ष्य जर्नल एस. एम. श्रीनागेश, जर्नल के.एस. थिमैया और जर्नल टी.एन. रैना मिले हैं।”

कारगिल युद्ध में भी कुमाऊँ रेजिमेंट की पहली बटालियन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। भारत – चीन 1962 के युद्ध में रंजगला में रेजिमेंट के सैनिकों ने बहुत वीरतापूर्वक प्रदर्शन किए। इस युद्ध में मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत असाधारण वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया | सियाचिन में पहली बार कुमाऊँ रेजिमेंट की 19 कुमाऊँ उतरी थी। इस रेजिमेंट को भारतीय सेना में बहादुरी के लिए वीरो के वीर कहा जाता है। इस रेजिमेंट को सम्मानित करने के लिए सन 1988 में डाक टिकट जारी किया गया।

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