प्रो.वल्दिया (Khadak Singh Valdiya) को गंगोलीहाट में मिले एक पत्थर ने पहुंचाया अंतर्राष्ट्रीय फलक | पिथौरागढ, सीमांत जिले की विभूति कहे जाने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पद्मश्री एवं पद्म भूषण से सम्मानित भू वैज्ञानिक प्रोफेसर खड़ग सिंह वल्दिया पिथौरागढ़ के आठगांव शिलिंग के देवदार (खैनालगांव) के निवासी थे। शिक्षाविदों, साहित्यकारों सहित तमाम लोगों ने उनके निधन को सीमांत पिथौरागढ़ जिले के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है। शिक्षाविदों का कहना है कि प्रो. वल्दिया सीमांत जिले की धरोहर थे।
भारत के प्रमुख भू वैज्ञानिकों में शामिल खड़ग सिंह वल्दिया (Khadak Singh Valdiya) का जन्म 20 मार्च 1937 को कलौं म्यांमार वर्मा में हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उनके पिता देव सिंह वल्दिया अपने परिवार के साथ पिथौरागढ़ लौट आए थे। इसके बाद वह शहर के घंटाकरण में स्थित भवन में रहे। पिथौरागढ़ से इंटरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और उसी में भू-विज्ञान विभाग में प्रवक्ता पद पर तैनात हो गए।
उन्होंने 1963 में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। भू विज्ञान में उल्लेखनीय कार्य करने पर 1965 में वह अमेरिका के जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय के फुटब्राइट फेलो चुने गए थे। 1979 में राजस्थान यूनिवर्सिटी उदयपुर में भू विज्ञान विभाग के रीडर बने। इसके बाद 1970 से 76 तक वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत रहे। 1976 में उन्हें उल्लेखनीय कार्य के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1983 में वह प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे। भारत सरकार की ओर से 2007 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
प्रो. वल्दिया का कद इतना बड़ा था कि इसरो प्रमुख सीएन राव उनके साथ दो बार साइंस आउटरीच कार्यक्रम में भाग लेने के लिए गंगोलीहाट आए थे। इसके अलावा उनके साथ हर साल आईआईटी कानपुर, इसरो, पंतनगर, डीआरडीओ आदि संस्थानों से वैज्ञानिक आकर बच्चों को विज्ञान की बारीकियों से अवगत कराते थे। हिमालयन ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष राजेंद्र बिष्ट ने बताया कि प्रो. वल्दिया भू वैज्ञानिक के साथ ही कवि और लेखक भी थे। आत्मकथा पथरीली पगडंडियों पर उन्होंने ही लिखी है। उन्होंने कुल 14 किताबें लिखी हैं।