Skip to content

घरौंदा, एक चिड़िया थी… a Poetry by Er Himani Arya

Poetry by Himani Arya, Pahadi Log

एक चिड़िया थी
चहक उठी जो
पाकर पंख अपार
उड़ी उड़ी वो
छूने नभ कोे
उड़ गयी सात समंदर पार ||

सारा जग घूम लिया
छाना सारा संसार
अनुभव सारे जहाँ का लेकर
लौट आयी उस द्वार ||

उस द्वार..
जहां घरौंदा जोह रहा था
जाने कबसे उसकी बाट
जानता था जैसे चिड़िया
लौट आयेगी उसके पास ||

जब चहक चहक संसार घूम
वो चिड़िया थक जायेगी
तब सोने चैन की नींद वो
वापस घर लौट आयेगी ||

बैठ के अपनी डाली पर जब वो
चीं चीं करके चहकेगी
उसकी जानी पहचानी आवाज को सुन
हर डाली डाली खिल जायेगी ||

बिन मौसम बसंत सा
उस आंगन में आ जायेगा
वो सूखे तिनकों का घौंसला
फिर से हरा भरा हो जायेगा ||

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *