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क्यों मानते है इगास उत्सव (Igas Festival)? उत्तराखंड | Igas Festival Uttarakhand

Igas Festival Uttarakhand, Pahadi Log

इगास उत्तराखंड (Igas Festival Uttarakhand) मैं मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्यौहार है, इसको मनाए जाने के पीछे बहुत सारे तथ्य माने जाते हैं इन्हीं तथ्यों में से कुछ तथ्य निम्न है।

क्यों मानते है इगास (Igas Festival)? क्या है इसके पीछे मनाये जाने का कारण?

  • पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम जी के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन, गढ़वाल क्षेत्र दुरुस्थ इलाकों में राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्राप्त हुई। इसीलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया।
  • दूसरा तथ्य यह है कि गढ़वाल राज्य के सेनापति वीर भड़ माधो सिंह भंडारी जब तिब्बत के साथ दीपावली पर्व पर लड़ाई से वापस नहीं लौटे तो जनता इससे काफी दुखी हुई और उन्होंने निराश होकर दीप उत्सव नहीं मनाया। इसके ठीक ग्यारह दिन बाद एकादशी को जब वह लड़ाई से लौटे। तब उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई। जिसे इगास पर्व नाम दिया गया।
  • हरिबोधनी एकादशी यानी इगास पर्व पर विष्णु भगवान शीर सागर से शयनावस्था से जागृत होते हैं इसलिए इस दिन विष्णु की पूजा करते है साथ ही गोवंश की पूजा भी की जाती है।

भैलू क्या है? जाने भैलू जलाने का महत्व्

इगास (Igas Festival) के दिन भैलू खेला जाता है जो रोशनी का प्रतीक है। भैलू एक प्रकार का रोशनी करने का तरीका है जिसमे रस्सी के एक सिरे पर मशाल बनाकर तथा दूसरे सिरे से हाथ से पकड़कर सिर के उप्पर घुमाते है, जिस से रोशनी का एक प्रतिमान बनता है जो देखने मै काफी सुंदर लगता है।

यह पर्व मवेशियों के लिए भी खास होता है इस दिन मवेश्यों को टिका लगाकर जौ का दाला खिलाया जाता है।

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