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बोलता हुआ घर… राधा बंगारी जी की कलम से

Radha Bangari Jee Pahad se Uttarakhand | Pahadi Log

जिन घरों को कभी प्यार से बनाया था, जिन घरों ने हमें धूप वर्षा और कई चीजों से बचाया था, आज वही घर वीरान से और खाली से पड़े हैं क्योंकि अब उनमें कोई नहीं रहता |

उस जर्जर अवस्था में भी वह घर शायद यही सोच रहा होगा कि जिस मालिक को मैंने इतने सालों प्यार से अपने अंदर पनाह दी, आज वही मुझे छोड़कर चला गया, कभी मालिक आए तो उनसे जरूर पूछूंगा क्यों, क्यों वह मुझे इस अवस्था में छोड़ कर चले गए |

आज मेरी दीवार है जो मेरा साथ नहीं दे रही दरवाजों को दीमक लग गई है, इतनी जर्जर अवस्था में हो गया हूं कि कभी भी ढह सकता हूं, एक बार आकर मुझे देखते, तो मैं उन्हें याद दिलाता वह पल जब उनका जन्म हुआ था यहां, और खुशी से पुरा परिवार झुम उठा था।

ऐसे कई खुशी के पल मैंने अपनी आंखों से देखें, कई होलीयां देखी कई दिवालियां देखी, ऐसे कई त्योहार जिनमें पूरा परिवार साथ रहता था और मुझे बहुत ही अच्छी तरह से सजाया जाता था। मेरे आंगन को गोबर से लीपा जाता था और देहली में ऐपण बनाया जाता था, और स्त्रियां अपने पारंपरिक परिधान में मेरे आंगन में झोड़ा चाचरी किया करती थी। पर एक दिन अचानक ही मेरे मालिक ने मुझे इस अवस्था में अकेला छोड़ दिया क्योंकि उनका कहना था कि यहां विकास नहीं है, रोजगार नहीं है, शिक्षा नहीं है, यहां सड़के नहीं है, अस्पताल नहीं है, इसीलिए वह किसी दूसरे प्रदेश चले गए। अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उसे यहां से जाना पड़ा । मैं उसके यहां से चले जाने पर कतई दुखी नहीं हूं सभी को अपने बच्चों की बेहतर भविष्य की चिंता करनी चाहिए बस मैं तो यही कहना चाहता हूं की मुझे इस जर्जर अवस्था में तो ना छोड़कर जाए आते जाते तो रहे चाहे कहीं भी रहे बस मैं उसे देखता रहूं वह मुझे देखते रहें बस इतनी सी ही विनंती है मेरी अपने मालिक से।

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