फिर जवानी नीचे भागती है, और बुढ़ापा ऊपर बैठा बस राह तकता है | poem by Kartik Bhatt
वो जो देखा था हमने एक सपना, कि कैसा होगा अलग प्रदेश अपना.. वो सपना रोज़ टूटता हैं, जब गाँव किसिका छूटता… जब मजबूरियाँ किसी… Read More »फिर जवानी नीचे भागती है, और बुढ़ापा ऊपर बैठा बस राह तकता है | poem by Kartik Bhatt